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Tuesday, 16 April 2013

कुछ दूर हम चलें, कुछ दूर तुम चलो......


कुछ दूर हम चलें, कुछ दूर तुम चलो
कुछ लब्ज़ हम कहें, कुछ लब्ज़ तुम कहो

है बेचैन क्यों आज ये दिल इस कदर,
हो जो तुम को खबर, अर्ज हम से करो....

कुछ दूर हम चलें.......

ये आवारगी मेरी राह बन गयी क्यूँ
ये बेचैनियाँ मेरी चाह बन गयी क्यूँ,

क्यूँ खोजता हूँ अक्स उसका इन वादियों में,
 हो जो तुम को खबर, अर्ज हम से करो....

कुछ दूर हम चलें.......

जिक्र तेरा ही क्यूँ मेरी हर बात में है,
सताता तू मुझे दिन में ऑ रात में है,
बता दे क्या करूँ मैं ऐसे हालात में....
हो जो तुम को खबर, अर्ज हम से करो.....

कुछ दूर हम चलें.......

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